वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था में गुरु शिष्य का संबंध
भारत में प्राचीन भारतीय शिक्षा पर प्रकाश तथा निम्न विशेषताएं
चनात्मकता
प्राचीन काल किस शिक्षा में यह देखी जाती है कि पहले विशेषताएं उसकी चना तक्ष्मकता थी कुछ योग्यताओं और नैतिकताओं के आधार से छात्र गुरु के आश्रम में जाता था तथा वह गुरु के आश्रम में रहकर के अपनी शिक्षा दीक्षा प्राप्त करता था जिसे हम प्रत्येक व्यक्ति के लिए शिक्षा का द्वार खुल नहीं था और वह सिर्फ तीन और वह छात्रों को आश्रम में प्रवेश वर्जित था इसलिए गुरु जो है वैसे सुयोग्य छात्रों का प्रवेश लेते रहे हैं।
विद्यारंभ संस्कार व्यवस्था
अलतेकर के अनुसार विद्यारंभ संस्कार 5 वर्ष की आय में होता रहा है सुधरता या सब जाति के बालकों के लिए अधिकांश विद्वानों के अनुसार यह संस्कार उसे समय होता था जब बालक प्राथमिक शिक्षा आरंभ करता था संस्कार के समय बालकों को अक्षर का ज्ञान तथा शिक्षाएं दी जाती थी।
ओपन आयरन संस्कार की व्यवस्था
उपनयन का शाब्दिक अर्थ होता है पास ले जाना तथा दूसरों से ज्ञान प्राप्ति के लिए छात्र को गुरु अपने पास ले जाता था तथा बाद में बालक का नवीन जीवन प्रारंभ होता था सतगुरु के पास जाकर के कहता था मैं ज्ञानवरदान करना और ब्रह्मचारी जीवन प्रतीत करने के लिए आपके पास आया हूं तथा मुझे ज्ञान प्रदान करें इस तरह से तुम्हें किस ब्रह्मचारी आदि का प्रश्न वचनबद्ध होता था तथा छात्रों से ग्रहण करता था।
गुरुकुल प्रणाली शिक्षा व्यवस्था
प्राचीन भारत में शिक्षा प्रणाली के तरह देखा जाए तो बहुत से ऐसी व्यवस्थाएं जो प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली को गुरुकुलित शिक्षा प्रणाली के नाम से जाना जाता रहा जबकि बालक साथ या 8 वर्ष का हो जाता था माता-पिता गुरु के पास छोड़ देते थे तथा गुरु के आश्रम में रहकर के बालक जो है शिक्षा प्रदान करता था जिसे हम गुरुकुल में शिक्षा प्रणाली के नाम से जाना जाता इस तरह से केवल शिक्षा प्रदान करना तथा संरक्षण के रूप में भी भरण पोषण वेशभूषा आदि की व्यवस्थाएं गुरु के देख-देख में समस्त होती रही हैं।
दिनचर्या का नियमित सिद्धांत की व्यवस्था
प्राचीन कालीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत देखा जाता प्रत्येक छात्रों के लिए नियमित दिनचर्या का उचित ढंग से पालन करना तथा प्रत्येक छात्रों के लिए सूर्योदय से पूर्व उठाने तथा स्नान करना यज्ञ करना पूजा करना वेद पढ़ना पाठ करना भिक्षा मांगना तथा गुरु की सेवा में समर्पित होना आज इस तरह से अभिन्न अंग माने जाते रहे हैं।
पाठक पुस्तक तथा विषयों की व्यापकता
वैदिक काल में पाठ्य पुस्तक के विषय से लेकर जो व्यवस्थाएं संचालित थी ब्रह्म ब्रह्मांड कल में शिक्षा के पाठ में अनेक विषयों का समावेश किया जाता रहा जिसमें चार वेदों का ज्ञान दिया जाता रहा चार वेद ऊपर नीचे इतिहास पुराण व्याकरण विधि शास्त्र देव शास्त्र भूत प्रेत विद्या एक आएं ब्रह्मा विद्या आज विषयों का अध्ययन छात्रों को कराया जाता रहा है।
दंड का सिद्धांत शिक्षा प्रणाली
प्राचीन शिक्षा में मनोविज्ञान के सिद्धांत के अनुकूल शिक्षा प्रदान करना एक प्रवृत्ति बन चुकी थी जिसमें छात्र को शारीरिक तंत्र प्रदान करना अनुचित अपराध माना जाता है दंड से गौतम नहीं थे आचार्य छात्रों को बौद्धिक क्षमता रुचि प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर के शिक्षा प्रदान किया जाता रहा है।
चरित्र निर्माण का सिद्धांत की व्यवस्थाएं
छात्रों के चरित्र निर्माण के लिए छात्र के स्वभाव संस्कारों को पूरा करना तथा ध्यान में रखकर के प्रतिपादक के लिए छात्रों को उचित पालन पोषण शिक्षा अनुकूल आदि परिस्थितियों की व्यवस्था गुरु के देख-देख में होती थी।
गुरु शिष्य संबंध की व्यवस्था
प्राचीन शिक्षा में गुरु और शिष्य के एक अटूट संबंध था जिसमें मध्यस्थ प्रत्यक्ष संबंध रहता था गुरु शिष्य के सीधे संपर्क में निसिदिन रहते थे साथ ही साथ गुरु शिष्य की शारीरिक मानसिक शक्तियों का भली प्रकार से अध्ययन कर लेना तथा गुरु अपने शिष्यों का पुत्र स्नेहा करना उसे रहन-सहन भोजन वस्त्र उत्तराडे तो आज उठाते रहे हैं पर आधारित थी से दोनों ही अपने कर्तव्य की प्रति जागरूक होते थे सदैव अपनी इच्छाओं से उनका पालन करते रहे इस तरह से विश्वास इसने प्यार सम्मान संबंध आदि गुरुकुल शिक्षा समस्या के अंतर्गत आता रहा गुरु को सहयोग प्रदान करते थे तथा पारिवारिक के सदस्य के रूप में रहा करते थे।
छात्र जीवन संबंधित नियम की व्यवस्था
छात्र नियमित जीवन व्यतीत करने के लिए गुरु के साथ-साथ खान-पान वेशभूषा आचार्य व्यवहार नियम आज का पालन अनिवार्य रूप से करते रहें।
भारतीय निशुल्क शिक्षा व्यवस्था
प्राचीन काल से ही भारत में निशुल्क शिक्षा प्रदान किया जाता रहा आज भी निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है छात्रों की है किसी प्रकार का शुल्क नहीं दिया जाता था शिक्षा को समाप्ति पर विशेष शिक्षा से अपने गुरु को दक्षिण प्रदान करते थे यह प्रथम प्राचीन काल से ही संचालित रही है।
धर्म और लौकिकता का समावेशन
प्राचीन काल में ही शिक्षा धर्म धर्म प्रधान माना जाता रहा है तथा छात्र निष्ठा के साथ धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करता था उनका निर्वहन करता रहा भारतीय धार्मिक शिक्षा लौकिक शिक्षा की व्यवस्था अनेक विषयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया गया।