महिलाओं का आंदोलन या जनजातीय आंदोलन
उत्तर वैदिक काल में इस दुनिया की सामाजिक स्थिति में गिरावट इतनी देखी गई की आधुनिक काल तक कायम रही स्त्रियां पैतृक संपत्ति में हकदार नहीं होती थी तथा उनका प्राचीन काल में कुल में स्त्रियां शिक्षा प्राप्त करती थी मध्यकाल में पहन के पीछे धकेल दिया गया तथा सती प्रथा के मध्य निंदा जिंदा जलाने की प्रथम संचालित हो गई 1856 में पूर्व विधवा विवाह वर्जित होने लगा ऐसी शिक्षाएं से वंचित होने लगी राष्ट्रीय आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन से उनकी राजनीति में भागीदारी बढ़ने लगी इस प्रथा को देखते हुए महिलाओं में आक्रोश होने लगा तथा यह आक्रोश एक विशाल आंदोलन का रूप लेने लगा।
 महिला के आंदोलन
भारतीय समाज में 20वीं सादी के आरंभ में राष्ट्रीय तथा आसानी स्तर पर महिलाओं के किस संगठन में वृद्धि देखने को पाई गई जिसमें वूमेन इंडिया एसोसिएशन 1971 तथा ऑल इंडिया विमेश कॉन्फ्रेंस अखिल भारतीय महिला कॉन्फ्रेंस ए ए ऊ सी 1926 नेशनल काउंसलिंग का वूमेन इन इंडिया भारत में महिलाओं की राष्ट्रीय काउंसलिंग एनसीडब्ल्यू आई आदि उसे समय के चर्चित महिला संगठन थे जिसमें से इनकी शुरुआत सीमित कार्य क्षेत्र से हुई इनका कार्य क्षेत्र समय के साथ-साथ विस्तार होता गया जैसे उदाहरण के स्तर पर कहा जाए प्रारंभ में ए ए ऊ सी का विचार आया कि महिला कल्याण तथा राजनीतिक आपस में संबंध है तथा इन्हें कुछ वर्ष तक अध्यक्ष भाषण में कहा गया क्या भारतीय पुरुष अथवा स्त्री स्वतंत्रता हो सकते हैं भारत गुलाम रहे हैं हम अपनी राष्ट्रीय स्वतंत्रता जो की सभी महान सुधारो का आधार मानते हुए सारे चुप कैसे रह सकते हैं इसकी भावनाएं जागृत होने लगी।
कुछ समय पश्चात यह माना जाना लगा कि केवल मध्यवर्गीय शिक्षित महिला ही विकास की तरफ अग्रसेन होने लगी इसे देखते हुए औपनिवेशिक कल में जनजाति तथा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रारंभ होने वाले संघर्षों क्रांतिकारी महिलाओं व पुरुषों के साथ भाग लेने में सक्रिय दिखने लगी जिस तरह से बंगाल में त्रिभागा आंदोलन निजाम के पूर्व शासन का तेलगाना सशस्त्र संघर्ष तथा महाराष्ट्र में बरली जनजाति के बथुआ दास के विरुद्ध क्रांति की चिंगारी या फैलने लगी।
 1947 से पहले महिला आंदोलन एक सक्रिय आंदोलन बांटा गया जो बाद में विकराल रूप लेने लगा राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने वाली बहुत सी महिलाएं प्रतिभागी राष्ट्र निर्माण के कार्य में संलग्न देखने को मिलने लगी तथा 1970 के दशक में मध्य में भारत में महिला आंदोलन का नवीनीकरण का विकास हुआ कुछ लोग भारतीय महिला आंदोलन का दूसरा दौर शुरू होगा तथा देखते ही देखते बहुत सी प्रथाएं शुरू हुई जबकि बहुत सी चिंताएं इस प्रकार बनी रहे जिस प्रकार के संगठन आत्मक रणनीति तथा विचारधाराओं दोनों में से परिवर्तन देखने को मिला ।
महिला आंदोलन कहे जाने वाले आंदोलन में वृद्धि होती गई स्वत शब्द इस तथ्य की ओर आकर्षित करता है कि महिला संगठन जिनके राजनीतिक दलों से संबंध स्थापित होने लगे तथा स्वास्थ्य साक्षी तथा राजनीतिक दलों में स्वतंत्र रूप से भाग लेने लगी।
संगठनात्मक परिवर्तन के अलावा कुछ नए मुद्दे भी ध्यान की तरफ केंद्रित होने लगे उदाहरण के लिए देखा जाए तो महिलाएं के प्रति हिंसा के बारे में वर्षों से अनेक अभियान चलाए गए जो प्रतिदिन बढ़ते गए आज स्कूलों से प्रार्थना पत्र में पिता तथा माता-पिता के प्रति हिंसा के बारे में वर्षों से अनेक अभियान चलाए गए तथा दोनों के नाम सामने आते गए जबकि अपने ऐसा नहीं था इस प्रकार महिलाओं के आंदोलन के कारण महत्वपूर्ण कानूनी परिवर्तन भी ले गए भूस्वामित तो वह रोजगार के मुद्दों की लड़ाई यौन उत्पीड़न तथा दहेज के विरुद्ध अधिकारियों की मांग के आगे लड़ाई लड़ी जाने लगी।
यह बात इस बात को मान्यता देती है कि स्त्री वह पुरुष दोनों ही प्रबल लिंग पहचान द्वारा बात होने लगे पिता सत्तात्मक समाज में पुरुषों को लगता था। तथा स्त्रियों को ताकतवर तथा सफल होना स्वयं की भावात्मक रूप से प्रकट कर पुरोहित होने लगा इसलिए पुरुषों दोनों को स्वतंत्र होने के अधिकार समान रूप से मिलना शुरू हो गया की संदेश या विचार निर्भर करने लगा की सच्ची स्वतंत्रता की अपनी इच्छा अनुसार विकास तभी संभव होगा जब कोई अन्य ना हो जनरल देश से समतावादी समाज मुख्यतः दो कर्म पर आधारित देखा गया पाल महिलाओं को शिक्षित किया जाए बहुउद्देशीय भूमिकाओं में सफलता का निर्वहन किया जा सके तथा दूसरा योग अनुपात का संतुलन बनाए रखा जाए भारत सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना एक ऐसा महत्वपूर्ण प्रयास किया जो लैंगिक दृश्य से क्षमता बड़ी समाज का मूर्ति रूप में सहायक सिद्ध होता है।